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विश्व प्रसिद्ध रम्माण मेले का धूमधाम से समापन

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विश्व प्रसिद्ध रम्माण मेले का धूमधाम से समापन

चमोली :  जोतिर्मठ के विकासखंड के सलूड़ डुंग्रा गांव में विश्व प्रसिद्ध रम्माण मेले का धूमधाम से आयोजन किया गया। इस दौरान पौराणिक परम्पराओं और पूजा अर्चना कर कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
लेकिन इस बार डीएम चमोली संदीप तिवारी ने रम्माण मेले को और व्यवस्थित बनाने के लिए उत्तराखंड के पर्यटन विभाग को मेले में प्रचार-प्रसार की सामग्री और सजावट के लिए सहयोग करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, देश-विदेश के फेमस ब्लॉगर्स की टीम भी मेले में आमंत्रित की गई थी।
जिसको स्वम् अपर निदेश पर्यटन उत्तराखंड पूनम चन्द अपनी टीम और कई ब्लॉगर्स के साथ रम्माण मेले में सलूड़ गांव पहुँची थी ।

सलूड़ डुंग्रा गांव में प्रतिवर्ष अप्रैल माह में रम्माण मेला का आयोजित होता है। इस गांव के अलावा डुंग्री, बरोसी, सेलंग गांवों में भी रम्माण का आयोजन किया जाता है। इसमें सलूड़ गांव का रम्माण ज्यादा लोकप्रिय है। इसका आयोजन सलूड़-डुंग्रा की संयुक्त पंचायत करती है। रम्माण मेला कभी 11 दिन तो कभी 13 दिन तक भी मनाया जाता है। यह विविध कार्यक्रमों, पूजा और अनुष्ठानों की एक श्रृंखला है। इसमें सामूहिक पूजा, देवयात्रा, लोकनाट्य, नृत्य, गायन, मेला आदि विविध आयोजन होते हैं। अंतिम दिन लोकशैली में रामायण के कुछ चुनिंदा प्रसंगों को प्रस्तुत किया जाता है। रामायण के इन प्रसंगों की प्रस्तुति के कारण यह सम्पूर्ण आयोजन रम्माण के नाम से जाना जाता है। इन प्रसंगों के साथ बीच-बीच में पौराणिक, ऐतिहासिक एवं मिथकीय चरित्रों तथा घटनाओं को मुखौटा नृत्य शैली के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।
रम्माण उत्सव में जिस नृत्य शैली का उपयोग किया जाता है, वह मुखौटा नृत्य शैली है।

इस में नृत्यक अपने मुख में मुखौटा पहनता है, फिर नृत्यकला का प्रदर्शन करते है। इसमें कोई भी संवाद पात्रों के बीच नहीं होता। पूरी रम्माण में 18 मुखौटों, 18 तालों, 12 जोड़ी ढोल-दमाऊ व आठ भंकोरों के अलावा झांझर व मजीरों के जरिए भावों की अभिव्यक्ति दी जाती है।
रम्माण का सलूड़-डुंग्रा से विश्ब धरोहर तक का सफर
रम्माण कौथिग (उत्सव) वर्ष 2007 तक सलूड़ तक ही सीमित था। लेकिन गांव के ही शिक्षक डॉ. कुशल सिंह भंडारी की मेहनत का नतीजा था, कि आज रम्माण को विश्व धरोहर में स्थान मिला हुआ है। डॉ. भंडारी ने रम्माण को लिपिबद्ध कर इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया। उसके बाद इसे गढ़वाल विवि लोक कला निष्पादन केंद्र की सहायता से वर्ष 2008 में दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र तक पहुंचाया।

इस संस्थान को रम्माण की विशेषता इतनी पसंद आयी कि कला केंद्र की पूरी टीम सलूड-डूंग्रा पहुंची और वे लोग इस आयोजन से इतने अभिभूत हुए कि 40 लोगों की एक टीम को दिल्ली बुलाया गया। इस टीम ने दिल्ली में भी अपनी शानदार प्रस्तुतियां दीं। बाद में इसे भारत सरकार ने यूनेस्को भेज दिया। 2 अक्टूबर 2009 को यूनेस्को ने पैनखंडा में रम्माण को विश्व धरोहर घोषित किया। रम्माण हर वर्ष आयोजित होने वाला रम्माण का शुभ मुहूर्त बैसाखी पर निकाला जाता है।

रम्माण, सलूड़ गांव की 500 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी परम्परा है।
मान्यता है कि आदिगुरु शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म में नई जान फूकने के लिए पूरे देश में चार मठों की स्थापना की। जोशीमठ के आस पास, शंकराचार्य के आदेश पर उनके कुछ शिष्यों ने गांव-गांव में जाकर पौराणिक मुखौटों से नृत्य करके लोगों में चेतना जगाने का प्रयास किया था जो धीरे-धीरे इन क्षेत्रों में इस समाज का अभिन्न अंग बन गया।
रम्माण के आयोजन में ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरा नंद व बदरीनाथ विधायक लखपत बुटोला भी शामिल हुए ।

 

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