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वंशी नारायण मंदिर के कपाट में बदलाव …

सदियों से चली आ रही कपाट खुलने की परंपरा में किया क्षेत्रवासियों ने बदलाव देखें विडीओ …..

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उत्तराखंड : भारत का ऐसा मंदिर जो पूरे साल रहता था बंद, केवल रक्षाबंधन के ही दिन खुलते थे वंशी नारायण मंदिर के कपाट,

लेकिन अब क्षेत्रवासियों ने भगवान वंशी नारायण मंदिर के कपाट भगवान श्री बद्रीनाथ जी के कपाट खुलने के दिन ही खोल रहे हैं और जब श्री बद्रीनाथ जी के कपाट बंद होते हैं तो उसी दिन ही क्षेत्रवासी भगवान वंशी नारायण जी के कपाट बंद कर देते हैं लेकिन रक्षाबंधन के दिन क्षेत्र वासी मंदिर में विशेष पूजा अर्चना करते है क्षेत्रवासियों का कहना है कि भगवान वंशी नारायण के मंदिर में पूरी बद्रीश पंचायत विराजमान है ।

10 हजार फीट की ऊंचाई पर आज भी आयोजित किया जाता है रक्षाबंधन का मेला कहते हैं कि – सब तीरथ बार बार वंशी नारायण मेला वर्ष में एक बार उरगम घाटी जोशीमठ (चमोली) उत्तराखंड में 10 हजार फीट की ऊंचाई पर भगवान विष्णु का एक सुंदर मंदिर है जिसको वंशी नारायण के नाम से जाना जाता है यह मंदिर पंच केदार कल्पेश्वर के उरगम घाटी के वाँशा,कलगोठ गांव के शीर्ष पर स्थित है वंशी नारायण के कपाट हर वर्ष बद्रीनारायण के कपाट के साथ पिछले 3 वर्षों से खोले जा रहे हैं और बद्री नारायण के कपाट बंद होने के दिन यहां कपाट बंद कर दिए जाते हैं यहां हर वर्ष कल गोट गांव के लोग रक्षाबंधन के दिन भंडारा एवं विशेष पूजा का आयोजन करते हैं यहां दर्जनों गांव के लोग मेले में भागीदारी करते हैं मेले में मुख्य रूप से भगवान नारायण को सत्तू दूध आदि का भोग लगाया जाता है कलगोठ गांव के वीरीगण पुजा मंदिर में करते हैं यहां गांव के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित होकर नारायण का प्रसाद भगत बनाते हैं वंशी शब्द सुनकर के ऐसा लगता है यहां भगवान कृष्ण का मंदिर होगा ऐसा नहीं है यहां भगवान विष्णु का चतुर्भुज मूर्ति विराजमान है जो शिव की तरह ,जलैरी में है यहां सभी अन्य देव गण जिसमें कुबेर ,क्षेत्रपाल घंटा करण ,उदव, गरुड़ एवं गणेश जी विराजमान है यहां पर वन देवियों की पूजा की जाती है दूर-दूर के लोग यहां भगवान नारायण को मक्खन घी लेकर आते हैं और नारायण जी को भेंट करते हैं कलगोठ महिला मंगल दल युवक मंगल दल के द्वारा बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए भंडारे का आयोजन किया जाता है कलगोठ के सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मण रावत बताते हैं कि ग्रामीण पिछले 3 दिनों से भंडारे की तैयारी के लिए वंशी नारायण में आ जाते है और रक्षाबंधन के दिन भव्य रुप से नारायण की पूजा की जाती है पूजा में एक हजार से अधिक महिला पुरुष रहते हैं इस मंदिर के बारे में साहित्यकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मण सिंह नेगी कहते हैं कि मंदिर 6-8 इस्वी के बीच इस मंदिर का निर्माण किया गया है ऊंचे ताप वाले जितने भी मंदिर हैं वह कत्यूरी शासनकाल के हैं और कत्यूरी राजवंशों का शासन जोशीमठ में छठी इस्वी के समय में रहा है मंदिर की बनावट को देख कर लगता है की अवश्य इस मंदिर को और भव्य बनाया जा रहा होगा यहां कुछ ऐतिहासिक एवं पुरातत्व की शिलांओ को देखकर लगता है कि कुछ व्यवधान इस मंदिर के निर्माण में हुआ होगा जनश्रुति के अनुसार यह मंदिर इतना ऊंचा बनाया जाना था कि यहां से बद्री और केदार मंदिर के दर्शन यहीं से किए जा सकें पांडव काल में जब पांडव इसका निर्माण कर रहे थे तो उन्हें व्यवधान पैदा हो गया था ऐसी लोकमान्य रहे हैं ,वंशी नारायण के आगे सुंदर बुग्याल

झरने तथा नंदी कुंड सवलून कुंड आदि रमणीक तालाव हे। बंसी नारायण पहुंचने के लिए पंच केदार कल्पेश्वर से 12 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पाकर यहां पहुंचा जाता है।

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