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18 वर्षों के बाद सुतोल गांव में अनोखा फुलारा कौथिक धूमधाम से मनाया गया…देखें वीडियो

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18 वर्षों के बाद सुतोल गांव में अनोखा फुलारा कौथिक धूमधाम से मनाया गया ।

फुलारा कौथिक उत्सव सुतोल गांव की एक पारंपरिक और सांस्कृतिक धरोहर है।
यह उत्सव गांव की समृद्धि और सुख-समृद्धि का प्रतीक है।

चमोली के सुतोल गांव में अनोखा फुलारा कौथिक त्योहार, जो 18 वर्षों के बाद मनाया गया है ।चमोली जिले के नंदानगर विकास खंड के दूरस्थ सुतोल गाँव जो 8 हजार फिट की ऊंचाई पर स्तिथ है जहां पर एक अनोखा त्योहार मनाया जाता है, जिसे फुलारा कौथिक कहा जाता है। यह त्योहार 18 वर्ष के बाद आयोजित किया गया इस बार । और 9 दिनों तक चलता है। इस त्योहार में गांव के लोग और आसपास के क्षेत्र के लोग भाग लेते हैं।फुलारा कौथिक की खास बात यह है कि इसमें देवताओं के पशवा हिमालय की ओर 36 किलोमीटर पैदल यात्रा करके 13 हजार फिट ऊँचाई से ब्रह्म कमल पुष्प तोड़कर लाते हैं। यह यात्रा नंगे पैर और बिना खाना खाए की जाती है। पशवाओं को सपने में दिखाई देने वाले स्थान से ही पुष्प तोड़ना होता है, चाहे वह कितना दूर हो या कठिन स्थान पर हो।दूसरे दिन रात्रि 11 बजे पशवा ब्रह्म कमल पुष्प को लेकर गांव में पहुंचते हैं, तो उसके बाद गांव में पूजा-अर्चना के साथ-साथ देवताओं के पशवाओं का नाच गाना होता है।

भक्तों को प्रसाद और आशीर्वाद दिया जाता है।इस त्योहार में गांव की ध्याणियां, ईष्ट मित्र, और क्षेत्र के ग्रामीण भारी संख्या में भाग लेते हैं। प्रसाद में ब्रह्म कमल पुष्प को विशेष रूप से दिया जाता है। विकट परिस्थितियों में भी इस प्रकार के कार्यक्रम बिना किसी बाधा के संपन्न होते हैं।फुलारा कौथिक की एक और खास बात यह है कि इसमें देवताओं के पशवा बहुत सारे ब्रह्म कमल पुष्प को अपने पर लेकर ही नाच गाना करते हैं, जो एक प्रकार का अनोखा नृत्य माना जाता है।वहीं पूजा संपन्न होने के बाद पूरे क्षेत्र के सभी ग्रामवासी खुशी में रातभर झोड़ा नृत्य का आयोजन करते हैं ।

यह जादुई लोक नृत्य उत्तराखंड का सभी जाती के लोगों को बाँधती है ।

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